*भ्रष्टाचार की पाठशाला (हास्य-व्यंग्य)*
भ्रष्टाचार की पाठशाला (हास्य-व्यंग्य)
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कितने दुख की बात है कि लोग कुर्सी पर बैठकर दस-बारह हजार रुपए की मामूली रिश्वत लेते हुए पकड़े जाते हैं। पूरा विभाग बदनाम होता है। कुर्सी शर्म से झुक जाती है। अखबारों के माध्यम से सब तरफ यह समाचार फैल जाता है कि वातावरण रिश्वतखोरी से भरा हुआ है।
अगर गहराई में जाया जाए तो यह कुछ नासमझ, नौसिखिया और बेवकूफ टाइप लोगों की गलती से होता है। उन्हें भ्रष्टाचार का आचार नहीं आता। हर क्षेत्र में आचार-व्यवहार बहुत मायने रखता है। इसे सीखना पड़ता है।
प्रशिक्षण लेना पड़े, तो भी लो। जो लोग इस क्षेत्र में दसियों-बीसियों वर्षों से कार्यरत हैं, उनके अनुभव का लाभ लो। चारों तरफ नजर दौड़ाओ। लोग करोड़ों रुपए खाकर बैठ गए और मजाल क्या कि उनकी मूॅंछों पर जरा-सी भी गंदगी कभी चिपकी हो। ऐसे हॅंसते-मुस्कुराते हैं कि जैसे चेहरे को दूध से धोकर घर से निकलते हों ।आदमी रिश्वत खाना तो कोई इनसे सीखे।
रिश्वत खाने का मूल मंत्र यह है कि कुछ नियम बनाकर चलो। जैसे ऊॅंचे पदों पर बैठे लोग निन्यानवे लाख रूपयों तक की रिश्वत नहीं खाते। उनकी रिश्वत एक करोड़ रुपए से शुरू होती है। उनके बारे में जनसाधारण से कितना भी पूछो, वह यही कहेंगे कि साहब बहुत ईमानदार हैं। जनसाधारण भला निन्यानवे लाख रुपये से ज्यादा की रिश्वत क्यों देने लगेगा ? अतः साहब की छवि हमेशा बेदाग बनी रहती है। रिश्वत की आमदनी तो कम जरूर होती है, लेकिन आदमी बदनाम नहीं होता।
जो लोग छोटी-छोटी रकम को भी हाथ से जाने नहीं देते, वह सड़क चलते हुए भी रिश्वतखोर के रूप में बदनाम हो जाते हैं। उनके पकड़े जाने के चांस भी ज्यादा होते हैं।
बड़े लोग प्रायः इस बात का दावा करते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में रिश्वत का एक पैसा भी नहीं छुआ। उनकी बात सोलह आने सच होती है। वे लोग वास्तव में कभी भी अपने हाथ से रिश्वत नहीं लेते। उनका सचिव रिश्वत लेता है। सचिव का बाबू रिश्वत लेता है। बाबू का चपरासी रिश्वत लेता है। लेकिन साहब कभी भी अपने हाथ से रिश्वत नहीं लेते। अब आप ही बताइए, जो आदमी इतना सजग होकर रिश्वत लेता हो; वह भला रॅंगे हाथों कभी पकड़ा जा सकता है ?
नियम तो यह है कि सभी व्यक्तियों को सजग होकर रिश्वत लेना चाहिए। अन्यथा बदनाम होते देर नहीं लगेगी। वैसे भ्रष्टाचार का एक अर्थशास्त्र यह भी है कि अब आजकल रॅंगे हाथों पकड़े जाने पर भी किसी की छवि खराब नहीं होती। एक कुर्सी पर बैठा हुआ व्यक्ति अगर पकड़ा जाता है, तो उसी जैसी सौ कुर्सियों पर बैठे हुए व्यक्ति उसके हित की चिंता करने लगते हैं। उसे कैसे बचाया जाए ? गोपनीय मीटिंग बैठती है। हर जिले और तहसील में समान पद पर समान रूप से भ्रष्टाचार करने वाले लोग मौजूद होते हैं। वे जानते हैं कि हमाम में सब नंगे होते हैं। उनको मालूम है कि रिश्वत खाना कोई बुरी बात नहीं होती। यह तो सब चलता है। बस बुरी बात यह है कि पकड़े गए। भ्रष्टाचार करते हुए पकड़े जाना एकमात्र समस्या है।
कई नवयुवक अपने वैवाहिक परिचय में आजकल यह बात खुलकर लिखने लगे हैं कि उनकी भ्रष्टाचार के कारण कितनी आमदनी होती है। इससे उनका ऊॅंचा स्तर प्रकट होता है। नंबर एक की आमदनी से रिश्वत की आमदनी का महत्व कहीं ज्यादा है। जितनी ज्यादा भ्रष्टाचार की आमदनी होगी, दहेज का रेट भी उतना ही ज्यादा हो जाएगा। यहॉं पर भी पकड़े जाने वाली बात का महत्व है। अगर कोई नवयुवक रिश्वत लेते हुए पकड़ा जा चुका है, तब उसका तात्कालिक बाजार-भाव एकदम नीचे चला जाएगा। कारण यह नहीं है कि वह रिश्वत लेता है; कारण यह है कि उसे रिश्वत लेना नहीं आता। भाई ! अगर रिश्वत लेना नहीं आता तो रिश्वत लेने से पहले किसी पाठशाला में जाकर सीखो।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
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