भ्रम
है जवानी
एक धोखा
मत होओ
मदहोश इसमें
कर्म ही
पहचान है
गर रहे संयमित
जवानी में
नहीं होगी
बदनामी
जीवन में
यौवन है
पानी सा
बुलबुला
उड़ जाऐगा
एक दिन
गर रहे
अपने अपनों के
ये
जीवन में
यादें छोड़
जाऐगा
न कर घमंड
न उड़ आसमां में
इन्सा
कर इज्जत
बुजुर्गों की
न जवानी रहेगी
न यौवन रहेगा
है सब भ्रम
मन का
आशीर्वाद ही
साथ रह पाऐगा
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल