भ्रम का तिलिस्म
कैसी है मोहब्बत का जादू
टौटका सी लगती है
आ जाए जब गिरफ्त में
तिलिस्म सा लगती है
तिलिस्म कैसा अनुपम
राह भटका देता है
चढ़ सिर पर चैन छीन लेता है
इश्क की फरियाद करते आये है
बर्बाद अपने को करते आये
लगा न मन कहीं ओर
प्रेम का टौटका
सुध-बुध छीन ले जाता है
तुम को फुसला न लें नादां
बचके रहना इस तिलिस्म से
अपने से पराए हो जाओगे
सारे जहाँ क भूल जाओगे
अधरों पर नाम का होगा उसका
दिल पर नाम होगा किसी का
भटक न जाना तुम नादां
बहकी बहकी गलियों से बचना
सोच के तुम कदम रखना
ना पड़ना बालाओं के जाल में
यौवन से दूर रहना
सुराओं से बच रहना
नादां फूँक फूँक कदम रखना
आ जाओ तुम्हारी बारी
सोच कर काम करना
दिल से दिल मिलाकर रखना
जीवन साज को सभाँल चलना
हर क्षण समरस रखना
जीवन आनन्द है तिलिस्म में
अपने को खो देने में
वजूद को भूलने में
किसी का होने मे
अपना बना लेने में
पान कर लो तिलिस्म
सुरा का
डॉ मधु त्रिवेदी