भ्रमण
भ्रमण का आनंद ले बंदे,
अभी तो श्वास बाकी हैं !
नए स्थानों का कर तू सैर
करोड़ों आस बाकी हैं !
गिरी की ऊँचाइयों पर
बर्फ में खो भी जाना है,
जंगलों की घनी चाँदनी में,
विचरण कर सो भी जाना है!
नदियों के तटों पे डाल के डेरा ,
तरंगों के लहरों में कभी खुद को ही पाना है।
सफ़र का मक्सद तो नए लोगों से मिलना है,
अजनबी संस्कृतियों की आभा से भी खिलना है।
भ्रमण का एहसास अनूठा, मानो हर पल नया अनुभव।
सैर का आनंद कर दे मुदित ,हर इक रोमांचक पल,
मज़ा हर नूतन राह में जो हो कौतुहल, हेर पगडण्डी ग़ज़ल!
कहा ख्वाज़ा मीर दर्द ने देखो बिलकुल ही सटीक
भ्रमण के महत्वा को समझा भी पूर्ण ही ठीक
“सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहां
ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ”