भौर हुई
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उठ जाओ अब भाैर हुई,
आंखे खाेलाे द्वार खड़ी परछाई,
पक्षी सब चहचहाने लगे,
साेये हुए सब सपनाे से जागे,
रजनी अब समेट बिस्तर भाग चली,
पनघट पर जमघट हाे चली,
ओढे चुनरिया नववधू पानी भरन लगी,
सूरज की लालिमा अब बिखरने लगी,
कली कली अब है फूल बनी,
गलियाराे मे है बहुत धूल सनी,
भाैरें भी फूलाे पर मंडराने लगे,
खेताे मे किसान अब पहुँचने लगे,
उठ जाओ अब भाैर………….
।।।जेपीएल।।।