भौतिकता
भौतिकता का युग नया,ऐसा किया विकास।
रिश्ते-नाते का रहा,ज़रा नहीं अहसास।।
प्रबल स्वार्थी भावना,मरे हुए जज्बात।
मानव मूल्यों का पतन,आदर्शों पर घात।।
अब लोगों के बीच में,खड़ा एक दीवार।
घर का सूनापन भरे,टीवी का संचार।।
अनजाने नजदीक हैं,हुए करीबी दूर।
भौतिकता की आड़ में,सुख-सुविधा भरपूर।।
सुख- सुविधाओं का सदा, करते रहें जुगाड़।
वजन बढ़ाया जेब का, दिया जेब को फाड़।।
फैशन परस्त ज़िन्दगी,मौज-मस्ती आराम।
होड़ा-होड़ी चल रही,भौतिकता आयाम।।
तड़क-भड़क है ज़िन्दगी,गाड़ी बँगला कार।
मानव के मन में भरा, लेकिन कई विकार।।
कुंठा नीरसता भरा,घोर घना अँधियार।
मक्कारी धोखाधड़ी,बढ़ता अत्याचार।।
जीवन के उत्कर्ष का,बदल गया सिद्धांत।
कलयुग नवयुग में लिखा,नया वेद-वेदांत।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली