भोपाल गैस त्रासदी २ -३दिसंबर१९८४
किसका है कहर सूना है शहर,
बाजार सारा ये वीरान है
लोग हैं भी यहां, सहमें सहमे हुए
भोपाल सारा ही शमशान है
कोई चिल्ला रहा कोई सुनसान है
कोई बैठा हुआ सहमा सहमा हुआ
कोई रोता यहां अपने मां बाप को
कोई कहता कलेजे के टुकड़े गए
कोई रोती बहन मेरे भैया गए
भैया रोता यहां प्यारी वहना गई
कई बच्चे यहां पर हुए हैं यतीम
कई परिवार पूरे तबाह हो गए
मांग उजड़ी किसी की कुछ न बचा
मौत का तांडव, था किसको पता
मौत इस तरह आएगी, था किसको पता
लाखों इंसान इस जहर से मरे
पशु पक्षी जानवर न इससे बचे
सो रहे थे सभी नींद के आगोश में
मेंथाआयल आइसो सायनाइड नाम की गैस थी यूनियन कार्बाइड कारखाने से हो रही लीक थी
मची भगदड़ सभी बेहाल थे,
घुट रहा था दम नयन लाल थे
भाग रहे थे सभी सभी बेहाल थे
गैस थी या बड़े काल के गाल थे
गिर गए सड़क पर हांफते हांफते
मर गए जो जहां थे खांसते खांसते
ऐसा मंजर न लाना मेरे खुदा
न मरे कोई ऐंसे, न हो कोई जुदा
शहर में जिस तरफ भी गई ये हवा
पट गया शहर लाशों से,न थी कोई दवा
सामूहिक जल रही थीं चिंताएं बड़ी
सामूहिक हो रहे थे कब्र में सब दफन
कितना बेदर्द घुला था, हबा में जहर
पीढ़ियों तक रहेगा, जहर का असर
जो बचे वो मर मर के जीते रहे
जिंदगी आंसुओं में डुबोते रहे
सुरेश कुमार चतुर्वेदी