भोग से योग की ओर
#नमन_ख़याल_परिवार
विधा —- स्वतंत्र
बोली — ठेठ भोजपुरी
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सुख साधन पा गइल बाबू, भोगे लगल भोग।
विषय विकार में लिप्त रह, तन के लागल रोग।।
तन के लागल रोग, पुरूषार्थ से विलग हो गईल।
समय भइल प्रतिकूल, काल के गाल समईल।।
भोग विलास येह दुनिया म़े, कारक सगरे रोग।
अगरजे सुख से जीयल चाह$,छोड़$ सगरे भोग।।
छोड़$ सगरे भोग , तनिक ई काम न आई।
कइल योग के संग, ईहै हर दुख के दवाई।।
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✍✍पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार