भोग की नियति तो है ही ध्वंस
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भोग की नियति तो है ही ध्वंस
मैं राम हूँ।
परंपरा निभाता हुआ राम।
मेरा अस्तित्व किन्तु, है रावण।
संस्कारगत लाम।
भोग की नियति तो है ही ध्वंस।
जीवन में रहा नहीं है योग का ही अंश?
योग रचना का श्वास
सृष्टि की प्रक्रिया की शृंखला का एक अंश खास।
भोग की नियति ध्वंस और योग की प्रकृति गढ़न।
राम युद्ध जीतता है तो, होता है भगवान।
सीता का परित्याग, होते रहने को भगवान।
जीवन-चरित्र में रण से ज्यादा भरा है आक्रोश।
प्रभु बनाने की आतुरता ने लील लिया है सारा दोष।
काव्य अद्भुद है नर को नारायण।
काव्य या कथा आत्मज्ञान से परे ज्ञान का भोग है।
सत्य को असत्य व असत्य को सत्य करने का रोग है।
अपना मन होता विध्वंस है।
तन भी।
मन,तन का ही तो अंश है।
भोग की नियति तो है ही ध्वंस।
साक्षात का अनादि-अप्रभंश।
ऋषि संतान रावण चिरंतन ज्ञान का चिन्ह।
निहत्था।
जीवनगत सत्यता हित
सृष्टि को मथा है।
निहत्थे की शक्ति कहाँ स्थित है
उसे पता है।
परम की भक्ति हुआ करता है अधम की शक्ति।
भोग की नियति तो है ही ध्वंस।
शक्ति का प्रयोग आत्मप्रशंसा के अतिरिक्त नहीं कुछ।
इसका उपयोग ब्रह्म के आशय सँवारने से भी उच्च।
स्त्री-अपहरण बलात् नहीं छद्म ढंग से।
अविश्वसनीय प्रसंग से।
भारतीय संस्कृति का पतन है।
मानवीय सोच का निकृष्टीकरण है।
कथाएँ स्थापित करती हैं आदर्श।
प्रेम,सौहार्द,कुटुम्बत्व का परामर्श।
रावण, भक्त शिव का निकृष्टता प्रदर्शित करे
अनेक आश्चर्यों में हो सकता है एक।
स्त्री-हरण का अभिप्राय
देह भोग या प्रतिष्ठा हनन।
रावण को कहाँ चिपकाएँ,एक प्रश्न।
राम ने
आदर्श का परिधान ओढ़ छल लिया है तुम्हें।
तेरे होने का उपक्रम।
खड़ा कर दिया है तुझे
दो अलग व्यक्तियों,व्यक्तित्वों की तरह।
तुम विमूढ़ खड़े रहे।
अपने-अपने दहलीजों पर
वक्र किए हुए भृकुटी ।
अड़े रहे।
रावण अनार्य का प्रतिनिधित्व सा करता
होता है प्रतीत।
वर्ण के आधार पर दासत्व के निर्धारण के
विपरीत।
भोग की नियति तो है ही ध्वंस।
राम की मर्यादा युद्ध है केवल युद्ध।
कहीं कोई दिखता नहीं है प्रयास प्रबुद्ध।
कबीलों की तरह दिखता है व्यवहार।
हत्या क्यों? क्यों नहीं बंदी बनाने का विचार।
सभ्यता और संस्कृति दोनों दोष युक्त है।
रावण-राम युद्ध की पूरी कथा शायद अनुपयुक्त है।
राम का अहं पर फैलना तुम्हारे होने से तेरा
निर्वासन है।
राम के साथ चलते हो।
इसलिए कोख से कब्र तक
यातना में जलते हो।
युद्ध और विजय।
भोग की नियति तो है ही ध्वंस।
स्वतंत्र रहने के लिए रावण शिव का अनुयायी था।
उस युग का सर्वश्रेष्ठ शक्ति-केंद्र।
निरापद,निस्पृह,दिशा,काल,अनादि-स्वरूपवत,
आदि का प्रारंभ।
सती का त्याग रामत्व का विरोध क्यों नहीं
मानते आप?
और रावण का समर्थन।
रावण एक संस्कृति की रक्षा हेतु मरा।
रावण स्वातंत्र्य हेतु ही नहीं डरा।
स्वतन्त्रता के लिए मरता है रावण।
बिना छल किए लड़ता है रावण।
—————1/11/२१————————-