भेंट
इस बार,
तुमको,
गुलाब के गुच्छे,
भेंट नहीँ करना चाहता,
इस बार,
तुमको,
सौंधी सौधी
माटी की ,
महक से सराबोर,
बगीचे में,
ले जाकर,
वहाँ खिल रहे ,
सैकड़ों गुलाब,
उनकी मुलायमियत,
उनके सुर,
उनकी महक में,
तुमको ,
डूब जाने दूँगा,
उनको तोड़कर ,
कुचलकर,
कचरे के पात्र में,
नहीं फेंकना है,
फूलों को,
डाली पर ही ,
खिलने देना है ।