भू दिवस के उपलक्ष्य में
22.4.2020
खेमकिरण सैनी
पर्यावरण
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धरती के चारों ओर जो आवरण है
वही हम सबका पर्यावरण है
छिन्न-भिन्न कर डाला है धरती माँ का संरक्षण
बढ़ा दिया प्राकृतिक असन्तुलन है।
पर्यावरण आज विषैला है
जल,थल, वायु में है प्रदूषण
अनावश्यक दोहन कर संसाधनों का
मनुष्य कर रहा है प्राकृतिक शोषण।
काटकर पर्वत, चट्टानों को
पर्यावरण से कर रहा खिलवाड़
ऋतुओं का चक्र बिगड़ चुका है
ग्रीष्म का ज्येष्ठ मास हो या वर्षा का आषाढ़।
पूजनीय होती थीं नदियाँ
पूजी जाती थीं माँ के समान।
रोती हैं आज अपने भाग्य पर
माँ को भूल गया है इनसान।
ज़्यादा फसलों के लालच में
मिट्टी में रासायन मिला डाला
अपने ही हाथों अन्नदाता ने
खेतों में ज़हर बो डाला।
फल-फूल रहे हैं उद्योग
तरक्की का नया प्रसार हुआ
अपनी करनी के परिणामस्वरूप
मानव जीने को लाचार हुआ।
काटे पेड़ जुटाए सुख-साधन
पर्यावरण का किया अमंगल
सर्वविनाश को दे रहा निमंत्रण
पर्यावरण में इंसान का
अनुचित दख़ल।
पर्यावरण संरक्षण ज़रूरी है
पर्यावरण ही जीवन है
धन दौलत सब नश्वर है
स्वास्थ्य ही सर्वश्रेष्ठ धन है।
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