भूल बैठे मेहमाँ हैं
खो गए बेकार हम, दुनिया के कारोबार में
भूल बैठे मेहमाँ हैं, हम सभी संसार में
कौन जाने, पार जाना है हमें कब, किस घड़ी
डोलती हैं ज़िन्दगी की, नाव ये मझधार में
ओढ़ ली चादर भरम की, हमने अपने चार सू
जी रहे थे चैन से हम, नाज़नीं के प्यार में
मौत आई ले चली, टूटा भरम घर-द्वार का
मान बैठे थे हक़ीक़त, झूठ को संसार में
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