भूल जाओ किसका आना रह गया
क्या बताऊँ? क्या बताना रह गया
सोचता बस यह, ज़माना रह गया
क्या यही चारागरी है चारागर!
जख़्म जो था, वो पुराना…! रह गया
लोग आए, शाम की, जाते बने
रह गया तो बादाख़ाना रह गया
इश्क़ में है जी जला फिर जिस्म भी
तू बता अब क्या जलाना रह गया
है कहाँ अब थी जो लज़्ज़त प्यार की
याद करने को फ़साना रह गया
आप ग़ाफ़िल जी लिखे जाओ अश्आर
भूल जाओ किसका आना रह गया
-‘ग़ाफ़िल’