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24 Mar 2022 · 1 min read

भूल गए!

22.22.22.22.//22.22.22

दौर दिखावा का आया पर ,प्यार दिखाना भूल गए।
आहों से गीत निकल आई तब, दर्द छिपाना भूल गए।

काश! तुम्हारे आलिंगन से, हर मुश्किल का हल होता
मगर जेब है खाली खाली , आना जाना भूल गए।

चौखट पर है कलश मगर दुर्बा अक्षत की कमी रही।
संस्कार में क्षरण देख हम, याद दिलाना भूल गए।

किसी समंदर ने आशा से जर्जर कश्ती थमा दिया।
हम तूफ़ा का लुफ्त उठाकर नाव चलाना भूल गए।

नफ़रत की दुनियां में सबने,सबसे सदा किया तौबा।
हम तितली को बाग दिखाकर पुनः उड़ाना भूल गए।

शाही रुतबा हमें दिखाकर अपने वश में वो करते।
खुद्दारी के जद में आ हम शीश झुकाना भूल गए।

दुनियां को रोशन करने आख़िर कब “दीपक” जले नहीं।
है बात अलग अपना पहलू प्रकाश कराना भूल गए।

©®दीपक झा रुद्रा

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