*भूल कर इसकी मीठी बातों में मत आना*
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भूल कर इसकी मीठी बातों में मत आना।
उसके लबों पे ज़हर है,कहीं चख न जाना।
वो सच को दफना कर उत्सव मना रहे हैं,
यह गीत भी रूदन है ,तुम इसे मत गाना।
ये लोग तो दरिंदे हैं ,इनमें दया धर्म नहीं है,
बेशक इन्होंने ओढ़ रखा है धर्म का बाना।
वो घात लगा कर उस पर्दे के पीछे बैठे हैं,
तुम निशब्द चले जाओ सामने मत आना।
उन्हें तेरा हंसना,खिलखिलाना रास नहीं है,
तुम अपने चेहरे पर मुस्कराहट मत सजाना।
तुम इन लोगों से कोई भी उम्मीद न रखना,
हर युग में,हर काल में,रहे संगदिल है ज़माना।
ये लोग तेरी किसी बात से सहमत नहीं होंगे,
तुम अपने ज्ञान की डुगडुगी कतई न बजाना।
बुरा वक्त है,वक्त के अनुसार खुद को ढाल ले,
इनके बीच रहकर तुम,कद्र हरगिज़ न गँवाना।
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सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब।