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4 Apr 2017 · 1 min read

भूलें

नजर आज सब कुछ मुझे आ रहा है,
कोई मुझसे यूँ जुदा हुए जा रहा है;

उम्र थी जब न कुछ सोच पाया,
जिसे खोजना था न खोज पाया।
क्यूँ वजूद मेरा न सँभाले जा रहा है,
कोई मुझसे यूँ जुदा हुए जा रहा है।

वो बचपन के दिन थे जब था खूब खेला,
जवानी को ऐशो-आराम में था धकेला।
अब क्षण हैँ अंतिम तो परदा खुले जा रहा है,
कोई मुझसे यूँ जुदा हुए जा रहा है।

नहीं होश थी कि मैं कुछ गँवा रहा हूँ,
वो नहीं है मंजिल जिधर जा रहा हूँ।
मेरा घर ए साथी कोई उजाड़े जा रहा है,
कोई मुझसे यूँ जुदा हुए जा रहा है।

नादाँ है तू ‘हंस’ जो जिंदगी यूँ बिता दी,
जो थी असली दौलत वो तूने गँवा दी।
अब इक बोझ सीने में लिए जा रहा है,
कोई मुझसे यूँ जुदा हुए जा रहा है।
सोनू हंस

Language: Hindi
583 Views
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