भूख
कल भूख से साक्षात्कार हो गया
बड़ी वीभत्स है वो
क्रूर डरावनी और निष्ठुर
मैं एक एक कौर के लिए
तरस रहा था
और वो ठहाके लगा रही थी
मेरा मुँह सूख रहा था
आन्ते ऐन्ठ रही थी
मुझ में उठने की ताकत नही थी
भूख हँस रही थी
घर में पूरी पकवान
काजू बादाम
दूध मलाई सब
रखा था पर
भूख ने मुझे रस्सी से
बाध रोके रखा था
मैं गिडगिडा रहा था
अपनी धन दौलत
सब देने का वादा
कर रहा था
सिर्फ एक रोटी के लिए
अब भूख मुस्कुराई
बोली:
नेताओ को चुनाव जीतने की भूख
अमीरों को पैसे की भूख
दस दस मकानो की भूख
अपार ज्वेलरी की भूख
और
इसके लिए भूखे को
और भूखा मारने की भूख
खैर छोड़ो
भूख से दम तोड़ती बच्ची की
वह तस्वीर तो देखी होगी
जिसे झपटने के लिए
एक सिद्ध बेताव् था
दोस्त ऐसी होती है भूख
तुमने भूख का मजाक बना रखा है
पेट भरा होने पर भी
भूख भूख चिल्लाते हो
आरक्षण मांगते हो
देश की सम्पत्तियों को
नुकसान पहुँचाते हो
दूध सब्जियों को सड़क पर
फैंकते हो
इसे भूख नहीं गर्रान्नापन
कहते है
दोस्त अन्न की इज्जत करो
अपना ही नही सब का ध्यान रखो
नहीं तो भूख के चन्गुल से
कोई नहीं बचा पाएगा
सपना अब टूट गया था
मगर भूख से दम तोड़ती
इन्सानियत और मानवता से
साक्षात्कार हो गया था…..
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल