भूख (मैथिली काव्य)
भूख
(मैथिली छ्द्ममुक्त काव्य)
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भूख लगैत अछि ,
मुदा गरीब केऽ ।
धनमन्त केऽ भूख,
बुझायैत कहाँ छै।
खटनिहार जन तेऽ ,
सुक्खल नून रोटी मेऽ सुआदक सुख,
ढूंढ लैत अछि ।
मुदा मोलाएम ओछावन पर ,
सुतऽबला रईस लोकनि केऽ,
भूख आओर सुआद लेल,
दर दर भटकऽ फिरैत छै।
साहि थाली आओर पोलाव परोसल,
मुदा भूखक अभाव में सुआद कहां।
अगिन सुनगाऽब,
कोनो बेजुबान निरीहक देह ,
धुकुर धुकुर आंच मेऽ झरकाएब।
केवल सुआदक लिप्सा मेऽ,
साहि कबाब पकाएब ,
परंच हाड़ मांस खा केऽ ,
पचाऐब दुरुह काज।
कतेक उठक बैठक करब,
भाँति-भाँति केऽ योग ,
तेइयो नहिं भोग।
कुकुरक संगे उद्यान में टहलु ,
पेट-पीठ फुलाउ सटकाऊ ,
अहार पचत नहिं,तऽ भुखो नहिये लागत।
जखनि धरि समझब नाहिं ,
किछु भेद निर्धनकेऽ भूख ।
तखनि धरि सोहायत नहिं ,
धनमन्त केऽ भूखक सुख।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ५ /१२/२०२२
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