” भुला दिया उस तस्वीर को “
भुला दिया उस तस्वीर को,
जो तकदीर में नहीं थी….!
बसाया है अब उसें यादों में,
ख्वाबों में, ख्यालों में….!!
महफिल जमी हुई थी हमारे चारों ओर
मगर नूर की कमी थी….!
मैं तो भुल बैठा था तूँ तो है मेरी शायरी में,
जज्बातों में, ग़ज़लों में….!!
बड़ी अजीब सी बरसात
हमारे शहर में हो रही थी….!
आसमां उदास था,
आँसू थें जमीन की आँखों में….!
सिर हिलाकर कर लिया जाता था कुबूल,
चेहरे से पर्दा हटाने की इजाजत कहा थी….!
आज भी रित कायम है जमाने में,
औरत को औरत द्वारा जलाने में….!!
इक आरजू दिल की दिल से,
तुम्हें दिल में बसाने की थी….!
अगर तुम्हारी भी होती
पाक मौहब्बत हमें चाहने में….!!
दर्दों से भरा पडा था सारा आलम,
बुराइयों की फैली जाल थी….!
कैसे आती भला कोई अच्छी खबर
सुबह के अखबार में….!!
होकर बेपरवाह, नशीली नज़रों से,
वो चाँद को निहार रही थी….!
हाल- ए- दिल अब उस चाँद का मत पूछों, अपनी जगह से हिलना भुल गया वो तो उसकी मदहोशी में….!!
लेखिका- आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना