भुलाने क्यों नहीं देते
तुम्हें मैं भूलना चाहूँ, भुलाने क्यों नहीं देते।
वो मंजर दिल तड़पने का, भुलाने क्यों नहीं देते!
खामोशी लब पे आ जाए तो जीना हो बहुत मुश्किल
पुरानी बात को अब तुम, भुलाने क्यों नहीं देते!
तुम्हारी आँख में झाँकूँ तो दिल ये काँप उठता है,
वो खंजर पीठ पे,मुझको, भुलाने क्यों नहीं देते!
उड़ा ले जाती हैं जो तितलियों को खुशबुएँ क़ातिल!
उन्हें खार-ए-गुलिश्ताँ,तुम भुलाने क्यों नहीं देते!
— कुमार अविनाश केसर
मुजफ्फरपुर, बिहार