भुजंगप्रयात छंद
भुजंगप्रयात छंद
१२२ १२२ १२२ १२२
जिये जा रहा हूँ, अकेले, अकेले।
सिये जा रहा हूँ, अकेले, अकेले।।
नहीं . एक साथी, न कोई सहारा।
बता भाग्य कैसे, लिखा है हमारा।।
न आँसूँ बचे है, जिसे मैं दिखाऊं।
कहो क्या कहानी, सभी को सुनाऊं।।
बता भाग्य में क्या, लिखा है विधाता।
सदा हाथ खाली, रखा है विधाता।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
पश्चिमी चम्पारण, बिहार