Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Sep 2021 · 2 min read

भीष्म-युद्धिष्ठिर संवाद

शीर्षक- भीष्म-युद्धिष्ठिर संवाद

विधा- छंदमुक्त काव्य

संक्षिप्त परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो.रघुनाथगढ़, सीकर राजस्थान 332027
मो.9001321438
ईमेल- binwalrajeshkumar@gmail.com

प्रणाम कुलशीर्ष पितामह!
आशीष धर्मराज! अनुकंपा है केशव की तुम पर।
कहो! याचक बनकर अभीष्ट वर मांगने….
या संशय के तम में दिशाहीन जीवन-नौका…!

अन्तरतम की पीड़ा का सार चिह्नते आप
हूक हिलोरे रह-रह जाती
विचलित करती मन को शर्बरी
निज हिय धर्म नहीं अब…
प्रकृति न थी मेरी हिंसा का व्यापार।

पश्चात युद्ध! तरस न कोई मुझ पर खायेगा
सहृदय जन भी मुझ पर प्रश्नचिन्ह लगाएगा
तर्क-वितर्क से इतिहास पृष्ठ उज्ज्वल न होंगे
हे कुटुम्ब श्रेष्ठ! समर न करूँँगा अब
कुरुराज विभूति की चाह थी हमको कब!

हे न्यायप्रिय धर्मराज! मलिन विलोचन न कर
अनिष्ट शंका-उर्मि का समाधान समर है!
न्याय-तत्त्व शांति पथ ही अमर है
न धिक्कार निज व्यथा से मन को
शांति-सुधा बहेगी महासमर उपरांत
न समय शास्त्रार्थ का……।

क्या भूल सकते हो मूक सभा में चीरहरण…
वंश मर्यादा भूल कौरव अन्यायी
कर्कट-से छल छद्मी
चूस मकरंद जनजीवन का
शोषण अन्याय में मध्यस्थ सहायक शकुनि कर्ण
अत्याचारी दमन जरूरी…….।

होगा वादानुवाद इतिहासों में चर्चित धर्मराज!
छोड़ दुश्चिंता! यथेच्छ साधन से कर समर जय
प्रबलेच्छा है मेरी कुचले जाये फण नागों के
बंधा राज सिंंहासन से प्रण मेरा…
पर! राजन घोषित हो तुम विजयोपरांत।

धर्मराज! शाश्वत सत्य-न्याय-शांति
नित्य विचरे प्रजा हिय में
पुष्परस से भाव सरस हो जन-जन में
स्मरण रहे हे ज्येष्ठ कौन्तेय!
सत्ता में समभागी हो श्रमजीवी
सम वितरण हो द्रव्य जन में
शासन रूपी जलयान श्रमिक ईंधन पर चलता
राजसिंहासन के तिलक-अक्षत
इनके पसीने से सींचे हुए
कुमकुम मिलता राज समाजों को इनसे
मेहनतकश से चले सिंंहासन
भेद न रहे शासक-शासित में
मिलता है महलों को रोटी-कपड़ा इनसे।

समर ही शांति का मार्ग है
करुणा का प्रसार हृदय शुद्धि साधन
हे धर्मराज! विचलित न हो।

Language: Hindi
1 Like · 492 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
Love night
Love night
Bidyadhar Mantry
स्वयं द्वारा किए कर्म यदि बच्चों के लिए बाधा बनें और  गृह स्
स्वयं द्वारा किए कर्म यदि बच्चों के लिए बाधा बनें और गृह स्
Sanjay ' शून्य'
🌹हार कर भी जीत 🌹
🌹हार कर भी जीत 🌹
Dr Shweta sood
जग जननी
जग जननी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
श्री राम जय राम।
श्री राम जय राम।
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
बिल्ली
बिल्ली
SHAMA PARVEEN
रोजी रोटी
रोजी रोटी
Dr. Pradeep Kumar Sharma
सागर ने भी नदी को बुलाया
सागर ने भी नदी को बुलाया
Anil Mishra Prahari
मैं कौन हूं
मैं कौन हूं
Anup kanheri
नेता खाते हैं देशी घी
नेता खाते हैं देशी घी
महेश चन्द्र त्रिपाठी
शर्ट के टूटे बटन से लेकर
शर्ट के टूटे बटन से लेकर
Ranjeet kumar patre
आजकल गजब का खेल चल रहा है
आजकल गजब का खेल चल रहा है
Harminder Kaur
वंसत पंचमी
वंसत पंचमी
Raju Gajbhiye
"दुबराज"
Dr. Kishan tandon kranti
खुद को कभी न बदले
खुद को कभी न बदले
Dr fauzia Naseem shad
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
जिन्दगी की यात्रा में हम सब का,
जिन्दगी की यात्रा में हम सब का,
नेताम आर सी
पसन्द नहीं था खुदा को भी, यह रिश्ता तुम्हारा
पसन्द नहीं था खुदा को भी, यह रिश्ता तुम्हारा
gurudeenverma198
■आज पता चला■
■आज पता चला■
*प्रणय प्रभात*
शिकायत करते- करते
शिकायत करते- करते
Meera Thakur
रमेशराज की चिड़िया विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की चिड़िया विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
फिल्मी नशा संग नशे की फिल्म
फिल्मी नशा संग नशे की फिल्म
Sandeep Pande
"चालाकी"
Ekta chitrangini
संपूर्ण राममय हुआ देश मन हर्षित भाव विभोर हुआ।
संपूर्ण राममय हुआ देश मन हर्षित भाव विभोर हुआ।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
ज़रा सी बात पे तू भी अकड़ के बैठ गया।
ज़रा सी बात पे तू भी अकड़ के बैठ गया।
सत्य कुमार प्रेमी
रिश्तें मे मानव जीवन
रिश्तें मे मानव जीवन
Anil chobisa
गुमनाम राही
गुमनाम राही
AMRESH KUMAR VERMA
परशुराम का परशु खरीदो,
परशुराम का परशु खरीदो,
Satish Srijan
आहाँ अपन किछु कहैत रहू ,आहाँ अपन किछु लिखइत रहू !
आहाँ अपन किछु कहैत रहू ,आहाँ अपन किछु लिखइत रहू !
DrLakshman Jha Parimal
खाई रोटी घास की,अकबर को ललकार(कुंडलिया)
खाई रोटी घास की,अकबर को ललकार(कुंडलिया)
Ravi Prakash
Loading...