**** भीषण गर्मी ****
**** भीषण गर्मी ****
यूँ गर्मी का रंग चढ़ा ,उल्का सी पड़ी है आँगन में ।
रुष्ठ हुए हैं इन्द्रदेव ,आग लगी है सावन में ।।
उत्पात मचा था उष्ण ऊर्जा का ,””’व्याकुलता चंडी घूम रही ।
ज्वाला के असंख्य अदृश थपेड़े ,”जिंदगानी निर्बस झेल रही । ।
मन की उद्दवेलित जिजिविषा को ,अशांत क्रांति करोंद चली ।
बहते पवन के लू प्रपंचों से , ”””””””””देह निगोड़ी रूठ चली । ।
ज्वर से पारा क्षितिज चढ़ा,””””””करे आंत्रशोध शक्ति हीना ।
सिर फोड़ दर्द की पीड़ा से ,”””’है कम्पित-संकित मन-वीणा । ।
व्याधि पर व्याधि राज रही ,””’जीवन -रथ डगमग है सारा ।
कहकहों भरी जीवन रेखा ””””””’,तृप्त है पीकर रस खारा । ।
पंचतत्व, पंचतत्व विलीन को ,”””””विद्युत गामी हो चला ।
शून्य सुरूपा सूर्य सुता पर ,”””””ज्यों मृत्यु अंकुरण हो पला । ।
देवलोक का पितृ दिवाकर ,”””””””’खेल अनल का खेल रहा ।
बिन पानी मीन सा जीवन , ””””””अग्नि- शूल को झेल रहा । ।
श्वांस -निश्वांस अटक-भटक के ,”’जीवन सुधा को तोल रहे ।
सुमधुर व्याख्यानी जिव्हा से ,”””’शब्द खंड-खंड हों बोल रहे । ।
******* सुरेशपाल वर्मा जसाला