“भीगी- भीगी बरसातों में”
शीर्षक:- भीगी भीगी बरसातों में…..
लो फिर आ गयीं याद उनकी
भीगी भीगी बरसातों में…..
सावन आ गया मगर वो नहीं आयें
भीगी भीगी बरसातों में…..
आँखें देख रही है राह कब से
कभी तो आओं आँसू बन के आँखों में…..
भीगी भीगी बरसातों में…..
भीगी भीगी बरसातों में…..
आखिर कब तक जलायें रखूं
इंतज़ार का दीपक मैं…..
आखिर कब तक झूठ से बाधें रखूं
उम्मीद की डोर मैं….
वो आकर चलें जाते है
अंधेरी रातों में…..
भीगी भीगी बरसातों में…..
भीगी भीगी बरसातों में…..
जब गुजरता है वो मेरी गलियों से
हवाओं में भी अपनी खूशबू बिखेर देता है…..
जुबान को रखकर खामोश
नज़रों के इशारों से वो मुझे पुकार लेता है…..
मेरे ख्यालों में आकर न जाने
कर जाता है कितनी ही बातें इशारों में….
भीगी भीगी बरसातों में…..
भीगी भीगी बरसातों में…..
न अब वो मेरे पास है…..
न मिलन की कोई आस है…..
न रूह की कोई प्यास है…..
प्रेम का अदभुत एहसास है….
बस एक मुलाकात की अरदास है…..
ख़ैर क्या रखा है अब इन बातों में…..
भीगी भीगी बरसातों में…..
भीगी भीगी बरसातों में…..
कुमारी आरती सुधाकर सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
स्वरचित एवं मौलिक रचना