भिगो रहा जमकर सावन
भिगो रहा जमकर सावन
भीग रहा मन का आंगन
मदमस्त फुहारें सावन की
रितु ना आवन जावन की
गीत पिया के प्रेम भरे
मन मोर रहे श्रंगार हरे
चहूंओर भरी हरियाली है
हर ओर घटाएं काली हैं
साजन रितु मतवाली है
प्रीत जगाने वाली है
बरस रहा है प्रेमामृत
भिगो रहा मेरा दामन
बरस रहा जमकर सावन
तरवतर किया है घर आंगन
सुरेश कुमार चतुर्वेदी