भाव उपजे हैं मन में नवल, गीत लिखने दे।
भाव उपजे हैं मन में नवल, गीत लिखने दे।
सुन री मैयत बैठ जा द्वारे।
क्यों आई तू साँझ- सकारे।
खटखटाना नहीं साँकल,
गीत लिखने दे।
भाव उपजे हैं मन में नवल, गीत लिखने दे।।१।।
भाव की गंगा में बहने दे।
शब्दों को थोड़ा महने दे।
तू ठहर जा यहीं कुछ पल,
गीत लिखने दे।
भाव उपजे हैं मन में नवल, गीत लिखने दे।।२।।
गीत लिखे जो पूर्ण करूँगा।
उससे पहले मैं न मरूँगा।
अब निकालो तुम्हीं कुछ हल,
गीत लिखने दे।
भाव उपजे हैं मन में नवल, गीत लिखने दे।।३।।
मृत्यु है तू सत्य सनातन ।
जग से तेरा प्रेम पुरातन।
देख करना न कोई छल,
गीत लिखने दे।
भाव उपजे हैं मन में नवल, गीत लिखने दे।।४।।
पूर्ण हुआ है गीत हमारा।
देख बना मैं पूरणहारा।
आ; लेकर मुझे अब चल,
गीत लिखने दे।
भाव उपजे हैं मन में नवल, गीत लिखने दे।।५।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’ (नादान)
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार