Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
14 Sep 2024 · 1 min read

भावों की अभिव्यक्ति का

भावों की अभिव्यक्ति का
आधार है हिंदी ।
हृदय की सम्पूर्णता में
मेरा प्यार है हिंदी ।
शब्दों में समेटे हैं,
मैंने भावों के मोती ।
संकल्प मेरे मन का
तेरा उद्धार है हिंदी।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद

1 Like · 19 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Dr fauzia Naseem shad
View all
You may also like:
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
रहे इहाँ जब छोटकी रेल
आकाश महेशपुरी
कागज मेरा ,कलम मेरी और हर्फ़ तेरा हो
कागज मेरा ,कलम मेरी और हर्फ़ तेरा हो
Shweta Soni
प्रकृति से हमें जो भी मिला है हमनें पूजा है
प्रकृति से हमें जो भी मिला है हमनें पूजा है
Sonam Puneet Dubey
!! मुरली की चाह‌ !!
!! मुरली की चाह‌ !!
Chunnu Lal Gupta
परिवार का एक मेंबर कांग्रेस में रहता है
परिवार का एक मेंबर कांग्रेस में रहता है
शेखर सिंह
एक होस्टल कैंटीन में रोज़-रोज़
एक होस्टल कैंटीन में रोज़-रोज़
Rituraj shivem verma
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
जीभ/जिह्वा
जीभ/जिह्वा
लक्ष्मी सिंह
* मन कही *
* मन कही *
surenderpal vaidya
"घर की नीम बहुत याद आती है"
Ekta chitrangini
क्षणिका
क्षणिका
sushil sarna
दुनिया में कहीं से,बस इंसान लाना
दुनिया में कहीं से,बस इंसान लाना
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
*भारत का वंदन करें आज, हम गीत तिरंगे का गाऍं (राधेश्यामी छंद
*भारत का वंदन करें आज, हम गीत तिरंगे का गाऍं (राधेश्यामी छंद
Ravi Prakash
माँ सुहाग का रक्षक बाल 🙏
माँ सुहाग का रक्षक बाल 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
*बदरी तन-मन बरस रही है*
*बदरी तन-मन बरस रही है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
सुन्दरता और आईना
सुन्दरता और आईना
Dr. Kishan tandon kranti
रजस्वला
रजस्वला
के. के. राजीव
सोचने लगता हूँ अक़्सर,
सोचने लगता हूँ अक़्सर,
*प्रणय प्रभात*
दलितों, वंचितों की मुक्ति का आह्वान करती हैं अजय यतीश की कविताएँ/ आनंद प्रवीण
दलितों, वंचितों की मुक्ति का आह्वान करती हैं अजय यतीश की कविताएँ/ आनंद प्रवीण
आनंद प्रवीण
रिश्ता नहीं है तो जीने का मक़सद नहीं है।
रिश्ता नहीं है तो जीने का मक़सद नहीं है।
Ajit Kumar "Karn"
आस्मां से ज़मीं तक मुहब्बत रहे
आस्मां से ज़मीं तक मुहब्बत रहे
Monika Arora
मां
मां
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
गीतिका
गीतिका
जगदीश शर्मा सहज
गज़ल
गज़ल
Mamta Gupta
2789. *पूर्णिका*
2789. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मैं बूढ़ा नहीं
मैं बूढ़ा नहीं
Dr. Rajeev Jain
हम भी बहुत अजीब हैं, अजीब थे, अजीब रहेंगे,
हम भी बहुत अजीब हैं, अजीब थे, अजीब रहेंगे,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
क्या देखा
क्या देखा
Ajay Mishra
"समय का भरोसा नहीं है इसलिए जब तक जिंदगी है तब तक उदारता, वि
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन
कामयाबी का
कामयाबी का
Dr fauzia Naseem shad
Loading...