भावनाओ की अर्थी
भावनाओं की अर्थी लिये
मैं अकेलें कब तक चलूं
दो कांधे गर मेरे हैं
तो दो तुम्हारे कांधे की
उम्मीद मैं क्यों न करूं?
क्या तुम नहीँ जानते कि
मृत भावनायें शव के लिये
सहेजकर रखे गए सफ़ेद कपड़े
की भेंट चढ़ जाती हैं।
आख़िर मृत सम्बन्धो की कांवर
खोखले रिश्तों का जाल
लिये मैं कब तक चलूं?
मैं श्रवण नहीं हूँ
वज्र कलेजा है मेरा
सब कुछ सहती हूँ लेकिन
फ़िर भी निभाती हूँ
अब तुम्हारे अहंकार के आगे
विश्वास का कद धूमिल होने लगा है
मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने
का कोई भी जतन तुम नहीं छोड़ते
डरती हूँ अगर किसी दिन
धैर्य की ईंट दरक गई तो
तुम्हारा क्या होगा?