भारी मन से होलिका बोली
भारी मन से होलिका बोली
बच्चों अब न मुझे जलाओ
युगों पहले जल गई थी मैं
मत जंगल में आग लगाओ
मुझे जलाने जंगल काटोगे
सांस कहां से लोगे?
नहीं बचेंगे पेड़ धरा पर
दोष किसे तुम दोगे?
प्रतीक रूप में त्यौहार मनाओ
कंडे से अब होली जलाओ
अपने हिंसा द़ेष मिटाओ
प्रेम प्रीत के भाव जगाओ
सप्तस्वरों में गीत सजाओ
गलती अपनी मत दोहराओ
दिल से मिलो त्यौहार मनाओ
कोविड प्रोटोकॉल अपनाओ
मानवता को सदा बचाओ
सुरेश कुमार चतुर्वेदी