भारत रत्न
सम्मान सौदेबाजी में मांगा नहीं कमाया जाता है,
वक्त आने पर पूर्वजों सा दम दिखाया जाता है।
सम्मान अब वोट पाने के लिए बांटे जाने लगे हैं,
प्रलोभन के टुकड़ों से उपयोग में आने लगे हैं।
जो पुरखों ने कमाई थी इज्जत लुटाने लगे हैं ।
सम्मान के प्रतीक इनके हाथों गरिमा गंवाने लगे हैं।
जब उसने अपनी तुलना चवन्नी से की थी,
अपनी औकात उसने पहले ही बता दी थी।
जिनके कमाए नाम व इज्जत की खा रहे हैं,
उन पूर्वजों की ईज्जत को मिट्टी में मिला रहे हैं ।
किसान को जो दिल्ली बॉर्डर पर रोके रखता है,
आज वो किसान हितेषी होने का दम भरता हैं।
अब देश का चरित्र कैसा होता जा रहा है,
हर कोई स्वार्थ के लिए पलटी खा रहा है ।