भारत के दो पड़ोसी
एक पड़ोसी चोरी चुपके, घर के अंदर आता है
आतंकवादियों के जत्थे, भारत में भिजवाता है
धर्म के नाम करता जिहाद, आतंक सदा फैलाता है
बहुत सहा अब नहीं सहूंगा, अब ये नहीं चलेगा
सब्र अगर मेरा टूटा तो, तू हिंदुस्तान बनेगा
एक पड़ोसी ढोकलाम में, आंखें हमें दिखाता है
और ६१ की याद भी हमको, बिना वजह दिलाता है
एक बात तुमको बतलाऊं, समझो तो समझाऊं
शेर अगर अपनी पर आया, तो ड्रैगन कहां दिखेगा
अब ६१ का नहीं हूं मैं, अब तू भी नहीं बचेगा