भारत की —
हो अगर पुष्प खंडित भी कभी,
सौरभ न खोना चाहिए,
सदि-वदि के राग द्वेष में
कांति न खोना चाहिए,
जलती है जो अच्युत सी ज्योति,
जग जन में भ्रांति न होना चाहिए,
है दिशा दुर्गंध फैला,
दुर्भाव न होना चाहिए,
चल रहे हम जिस दिशा में,
हर्ष आश होना चाहिए,
कर सुधि श्रृंगार सभी,
गौरव न रोना चाहिए,
हो अगर पुष्प खंडित भी कभी,
सौरभ न खोना चाहिए।
पथ मिले कांटे अगर भी कभी,
धैरज न खोना चाहिए।
हम चल सके जो साथ एक,
पथ एक होना चाहिए।
रक्त हो मेरा अगर भी कभी,
राष्ट्र भावबलि होना चाहिए।
धरा एक, एक राष्ट्र, हर एक जन,
एक राष्ट्र तंत्र होना चाहिए।
भर ले उमा अंगार स्व का,
अहंकार विध्वंस होना चाहिए,
भारतवर्ष की अमर ध्वज की,
चेतना मानव में होना चाहिए,
हो अगर पुष्प खंडित भी कभी,
सौरभ न खोना चाहिए।
उमा झा