भारत का संविधान
मैं भारत का संविधान हूँ , अपनी व्यथा सुनाता हूँ।
क्या- क्या मेरे सँग होता है,सारी बात बताता हूँ।
कसमें मेरी खाते नेता,और भूल फिर जाते हैं।
जिस जनता के लिए बना हूँ,उसको खूब सताते हैं।
देख देखकर लोगों को मैं ,रहता सदा लजाता हूँ।।
मैं भारत का—
न्याय व्यवस्था पंगु हो रही,सुलभ नहीं सबको होती।
लोकतंत्र में लोक नहीं हैं,जनता रहती है रोती।
भारत माँ को गाली देते, झंडा लोग जलाते हैं।
जाति- धर्म का आश्रय लेकर,दंगे भी करवाते हैं।
सही सीख मैं देता रहता,मार्ग सही दिखलाता हूँ।।
मैं भारत का—
हमने समता की बातें की,लोगों ने खाईं खोदी।
भाई -चारा मेरा नारा ,सबने जहर बेल बो दी।
शर्म आँख में कुछ रहने दो, दया धर्म की बात करो।
रहो परस्पर प्रेम भाव से, पावन हर जज़्बात करो ।।
सद्गामी लोगों के दिल में,हरपल खुद को पाता हूँ।।
मैं भारत का—-
गलत काम सब मिल करते हैं,मेरा नाम लगाते हैं।
संविधान हक हमको देता,यह ही राग सुनाते हैं।
हमने तो अधिकार दिए थे, दुरुपयोग सबने सीखा।
कर्तव्यों को तो भुला दिया,फर्ज न खुद का ही दीखा।।
पावन भारत भू की निशि दिन,गौरव गाथा गाता हूँ।।
मैं भारत का—-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय