*रात से दोस्ती* ( 9 of 25)
जो गूंजती थी हर पल कानों में, आवाजें वो अब आती नहीं,
जिस तन पे कभी तू मरता है...
Shankar lal Dwivedi and Gopal Das Neeraj together in a Kavi sammelan
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
जो व्यक्ति अपने मन को नियंत्रित कर लेता है उसको दूसरा कोई कि
गले से लगा ले मुझे प्यार से
*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
वतन से हम सभी इस वास्ते जीना व मरना है।
प्रेम और घृणा से ऊपर उठने के लिए जागृत दिशा होना अनिवार्य है
लाल रंग मेरे खून का,तेरे वंश में बहता है
जाने किस मोड़ पे आकर मै रुक जाती हूं।
तेरा लहज़ा बदल गया इतने ही दिनों में ....