भारत और इंडिया तुलनात्मक सृजन
भाव, ताल औ”राग से, निकला भारत देश।
आज बना है इंडिया, बदल गया परिवेश।।
देवों ने जिसको रचा, अपना भारत धाम।
बदल दिया अंग्रेज ने, रखा इंडिया नाम।।
भारत भावों से भरा, अर्थपूर्ण है नाम।
अर्थहीन है इंडिया, अर्थहीन सब काम।।
स्वर्ण विहग भू भारती, पत्थर में भगवान।
जब कहलाया इंडिया, भूल गया पहचान।।
भारत में भाषा कई, दे हिन्दी रस घोल ।
अब कहता है इंडिया, अंग्रेजी बड़बोल।।
भारत में चारों तरफ, पेड़, खेत-खलिहान।
भरा प्रदूषण इंडिया, त्राहि-त्राहि इंसान।।
भारत में संगीत लय, ताल रिदम हर साँस।
पाॅप-साॅग पर इंडिया, करे आइटम डांस।।
भारत बगिया में भरा, कटहल जामुन आम।
मैग्गी, पिज्जा इंडिया, बेचे ऊँचे दाम।।
भारत में पंडाल है, मंडप, मंदिर, चाॅल।
पब-डिस्को है इंडिया, माॅल सिनेमा हाॅल।।
भारत का प्राकृतिक छवि, देव रूप प्रत्यक्ष।
मगर आज यह इंडिया, काट दिया सब वृक्ष।।
भारत में सद्भावना, मिले सखा सी हस्त।
चकाचौंध में इंडिया, अपने में सब मस्त।।
करुणाकर, करुणामयी, भारत हृदय विशाल।
भौतिक सुख में इंडिया, रिश्ते किये हलाल।।
भारत में जीवन भरा, पंच तत्व से प्रीत।
हृदय शून्य है इंडिया, आडंबर है मीत।।
भारत माँ की गोद में, सुख की शीतल छाॅव।
बसा शहर में इंडिया, छोड़ा अपना गाॅव।।
भारत कण-कण में बसा, कितने रीति – रिवाज।
बिखर रहा है इंडिया, घायल हुआ समाज।।
हँसी–ठहाके, मसखरी, भारत का सौगात।
सिसक रहा है इंडिया, रही नहीं वो बात।।
भारत श्री मदभागवत, नित रामायण पाठ।
धर्म-कर्म में इंडिया, देखे अपना ठाठ।।
भारत में मिलजुल रहे, दादा-दादी साथ।
मकड़ जाल में इंडिया, कौन उबारे नाथ।।
हरा-भरा मधुवन जहाँ, भारत रूप हसीन।
इंडिया में दिवाल पर, पर्दे हैं रंगीन।।
भारत में संतोष है, परंपरा सुख चैन।
बदहवास सा इंडिया, भाग रहा दिन-रैन।।
भारत निश्छल भाव से, करता आदर सत्कार।
स्वार्थ भरा यह इंडिया, स्वार्थ पूर्ण व्यवहार।।
भारत में ग्रामीण का, सीधा सरल स्वभाव।
अवसादित है इंडिया, छल झूठ का प्रभाव।।
भारत में हल जोतते, कर्मठ-बली किसान।
टावर, चिमनी इंडिया, गगन- चुुम्बी मकान।।
भारत गावों में बसा, जीवन का सब सार।
फैशन वाला इंडिया, माया का संसार।।
साड़ी, चोली, चुनरिया, भारत का श्रृंगार।
निम्न वस्त्र में इंडिया, भूले सब संस्कार।।
भारत में माता-पिता, बच्चों के भगवान ।
वृद्धा आश्रम भेजना,कहे इंडिया शान।।
क्या खोया क्या पा लिया, भारत करो विचार।
बना दिया क्यों इंडिया, कटुता का बाजार।।
-लक्ष्मी सिंह