भारतीय समाज में गुरू का महत्व
भारतीय समाज में गुरू का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ।
गुरू मार्गदर्शक , चिन्तामुक्त करने वाला और सदैव अपना आशीष, आशीर्वाद बनाये रखने वाले होते है ।
जीवन में गुरू का स्थान भगवान तुल्य या यह भी कह सकते है कि उनसे भी बढ़ कर है , तभी कहा गया है :
“गुरूर ब्रह्मा, गुरूर विष्णु,
गुरूर देवो महेश्वर ,
गुरूर साक्षात परब्रह्म
तस्मये श्री गुरूवे नम:।”
स्पष्ट है कि परिवार, समाज और व्यक्तिगत जीवन में जन्म के बाद बच्चे के पहले गुरू माता-पिता और उसके बाद पथप्रदर्शक गुरू होते हैं ।
वर्तमान समय में बच्चों के जीवन में अच्छे संस्कारों की बहुत जरूरत है इनको देने के लिए गुरू की महत्ता और आवश्यकता बहुत जरूरी है ।
यह पाया गया है कि उच्च से उच्चतम स्थान तक पहुंचने वाले व्यक्ति के जीवन में गुरू का विशेष योगदान रहा है ।
भगवान राम और उनके भाईयों का जीवन भी गुरू के संरक्षण में सजा – संवरा है ।
– गुरू, जीवन में शिक्षा के साथ साथ , अच्छे- बुरे की पहचान भी करवाते हैं ।
– गुरू, जीवन में व्यवहारिक ज्ञान से परिचित करवाते हैं ।
– गुरू, सम्मानजनक जीवन जीने के पहलूओं से परिचित करवाते हैं ।
– गुरू, जीवन की जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के सहज, सरल उपायों से परिचित करवाते हैं ।
– गुरू ज्ञान के भंडार है चाहे वह आध्यात्म हो, पढ़ाई हो
– सरल शब्दों में जीवन में जो सुख दुःख में साथ दे , मार्गदर्शक बने, सही-गलत की पहचान करवाये वह भी गुरू संदर्श ही है
– गुरू को व्यापक रूप में स्वीकारना है ।
– गुरू के प्रति भ्रम नहीं पालना है , गुरू ही सत्य है गुरू ही सर्व व्यापक है, गुरू ही सर्वश्रेष्ठ है जब हम ऐसी धारणा ले कर चलेंगे तभी हम गुरू के प्रति समर्पित हो पाएंगे और उनका लाभ हमें मिल पायेगा ।
बदलते परिवेश में जब हमारी स॔स्कृति पश्चिम से प्रभावित हो रही है गुरू की बहुत जरूरत है , जो नयी पीढ़ी को भारतीय संस्कार, संस्कृति से परिचित करवाये और भारतीय परिवेश में ढालें ।
और अंत में गुरू की महिमा के लिए यही कहा जा सकता है :
” गुरू गोविन्द दोऊ खड़े
कांके लागू पायल,
बलिहारी गुरू आपना,
गोविन्द दियो बताये ।”
संतोष श्रीवास्तव