**भारतीय व्रत परंपरा एवं नारी**
*********भारतीय व्रत परंपरा एवं नारी*********
आदि अनादि काल से वर्तमान तक हम देखें तो भारतीय समाज में व्रतो का बहुत अत्यधिक महत्व बताया गया ।
व्रत एक साधना है समर्पण है, एवं अपने किसी आराध्य के प्रति सच्चा भाव है ।
हमारे देश में शायद ही कोई दिवस ऐसा जाता होगा जो किसी न किसी व्रत पर्व आदि से न जुड़ा हुआ हो।
एक साधक जब किसी व्रत को धारण करता है तो उसके मन में एक ही बात होती है की वह जिस भाव से अपने आराध्य का स्मरण कर रहा है उसका उसे स्नेह मिल जाए।
भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है परंतु हम देखते हैं भारत देश में जिन व्रत परंपराओं का निर्वहन नारी शक्ति जिस सिद्धता से करती है वह अतुलनीय है ।
नर और नारी प्रकृति की अनुपम कृति है , किसी एक के बिना संसार की कल्पना नहीं की जा सकती।
तथापि हम जिस संदर्भ में चर्चा कर रहे हैं व संदर्भ है भारतीय व्रत परंपरा एवं नारी।
भारतीय नारी कभी भाई के लिए कभी पुत्र के लिए और सबसे अधिक अपने पति के लिए औरतों की साधना निरंतर करती चली आ रही है।
आज हम व्रत परंपरा में जब इस लेख को लिख रहे हैं तब भी आज नारियों का एक महानतम व्रत करवा चौथ है।
पत्नी का संसार उसके पति से है और वही पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिए इस व्रत को निर्जल निराहार रहकर के करती है जो कि बहुत कठिन तम साधना है ।
पत्नी अपने इष्ट आराध्य देव से प्रार्थना करते हुए सिर्फ यही चाहती है कि मेरा सौभाग्य मेरा सुहाग अखंड रहे ।
मैं जीवनभर सुहागन रहूं मेरी उम्र भी अगर पति के जीवन के लिए देना पड़े तो दे दू।
कितना समर्पण आखिर नारी में होता है ।
यमराज से भी लड़ जाए पति के लिए कुछ भी कर जाए
धन्य है नारी तेरा समर्पण, त्याग तुझसा और हम कहां पाए
व्रत तेरे हो सदा ही पूरे, स्वप्न ना रहे कभी अधूरे।
अखंड रहे सुहाग तेरा जिसके साथ लेती तू फेरे।
जय नारी शक्ति !!!!!!!!!!¡!!जय नारी शक्ति!!!!!!!!!!
राजेश व्यास अनुनय