भारतरत्न मदर टेरेसा
1962 में भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ प्रदान की थी, तो उन्हें रेमन मैग्सेसे पुरस्कार भी प्राप्त हुई थी । भारत की नागरिकता प्राप्त ये समर्पित ‘नन’ मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के कुष्ठ रोगियों की ओर से ‘मदर’ कहलाने लगी, तो वे स्पेन के महान संत टेरेसा से काफी प्रभावित थीं, जिन्होंने स्पेन के लोगों को नए जीवन जीने का अमर-संदेश दिया था।
फिर 18 की उम्र में वे संत टेरेसा से प्रभावित हो संन्यासिन हो गई। फिर अपने आदर्श और महान संत टेरेसा से प्रेरित होकर उन्होंने अपना नाम टेरसा रख ली और फिर ‘मदर’ संबोधन कर भारत ने समुचित प्यार दिया! वे पहलीबार 1929 में भारत आई थी, उनसे पहले एग्नेस को पहले आयरलैंड के लोरेटो मुख्यालय और फिर डब्लिन भेजी गयी।
यहां उसे मिशनरी के कार्यों की ट्रेनिंग मिल पाई। भारत पहुंचते ही सबसे पहले उनको दार्जिलिंग में नोविसिएट का कार्य सौंपा गया। यहां से कोलकाता के इंटाली के सेंट मैरी स्कूल में भूगोल की टीचर बनकर उन्होंने बच्चों को पढ़ाया।
इस स्कूल में वे 1929 से 1948 तक रहीं। इस दौरान कुछ समय वे इस स्कूल की अध्यक्षा भी रहीं। मदर ने 7 अक्टूबर 1950 को कोलकाता में मानवता सेवी गतिविधियों के लिए आचार्य बसु रोड पर मिशनरीज ऑफ चैरिटीज की स्थापना की और वे यहीं की रह गयी । मृत्यु के बाद उन्हें पोप द्वारा ‘संत’ की आध्यात्मिक उपाधि भी प्रदान की गई।
भारतरत्न, संत, माँ ‘मदर’ टेरेसा की 112वीं जयंती पर सादर नमन! 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से व 1980 में भारतरत्न से सम्मानित संत मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया के स्कॉप्जे (अभी ‘मकदुनिया’) के एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था। उनकी मूलनाम “एग्नेस गोंझा बोयाजिजू” थी।
मदर टेरेसा सिर्फ़ 12 वर्ष की उम्र में ही मानव-सेवा की ओर संलग्न ही गईं थीं। सरकारी स्कूल में पढ़ते समय वह सोडालिटी की बाल सदस्या भी बन गई। ‘सोडालिटी’ मानव-सेवा को समर्पित ईसाई संस्था थी। जिसका प्रमुख कार्य लोगों व खासकर छात्रों को स्वंयसेवी कार्यकर्ताओं के रूप मे तैयार करना था। श्रद्धेया मदर की जन्म-जयंती पर ‘माँ’ को सादर नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !