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25 Dec 2019 · 1 min read

भारतमाता ग्राम्यवन्यविहारिणी

उत्ताल तरंगाघात प्रलयघन गर्जन जलधि क्षण भर,
धीर-वीर सौंदर्य गर्वित, खड़ा अविचल हिमगिरि , धीर-धर ,
शान्त सरोवर विशुद्ध धवल सिमटी हैं वर्तुल मृदुल लहर ,
क्षिति-जल-अनिल-अनल में , नभ में, अविरल सस्नेह गूंज रही स्वर ।
जगतितल में, व्योममण्डल में,
शुचि शाश्वत भूति विस्तारिणी ,
वंदन ! भारतमाता ग्राम्यवन्यविहारिणी ।

✍? आलोक पाण्डेय

Language: Hindi
428 Views
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