भानु रथ रुके न एक ही गाँव
दिनभर मेहनतकश मेहनत कर
करे प्रतीक्षा आए शाम ।
ढले शाम, हो रात आगमन
मन भर कर करने विश्राम ।
यो ही नित्य चले है नश्वर
दिन के बाद रात का दाँव ।
भानु रथ रुके न एक ही गाँव।
स्वर्णिम आभा सौप साँझ को
शुभ रात्रि का दे पैगाम ।
फिर मिलेंगे कह कर सूरज
चल देता है अगले धाम ।
अंधकार आभार जताने
दौड़ा आता नंगे पाँव।
भानु रथ रुके न एक ही गाँव ।।
देख गगन को रंग बदलते
पक्षि लौटते निज निज वृक्ष ।
पाकर कुशलक्षेम निजनिज की
वृक्ष भी सोते हैं हो दक्ष ।
सूरज देख लौट कर आता
पेड़ पुन: कर देते छाँव ।
भानु रथ रुके न एक ही गाँव ।।