भाई साहब शुभ प्रभात
भाई साहब शुभ प्रभात-
क्यों म्लान है मुख, शिथिल गात।
भाई साहब……….।
मैंने आपको उच्च पीठासीत देखा है,
मैंने आपका गौरवशाली अतीत देखा है।
स्वघोषित ये रौद्रावतार,
लोगों को आपसे भीत हुये देखा है।
नहीं किसी की आपने, कभी पूँछी कुशलात।
भाई साहब………..।
दीन बन्धु नहीं हो सके कभी, अब स्वयं दीन हो गये हैं,
वैभव सम्पदा है यथा, पर आप हीन हो गये हैं।
समय चक्र ने आपको कल्पनातीत दिखला दिया,
सब कुछ होते हुये भी, आप विहीन हो गये हैं।
मुँह फेर चले जाते हैं सब, नही करता कोई बात।
भाई साहब………..।
अपनों से ही आप अनादर पाते हैं,
अपने अंशावतारानुसार आप सनक जाते हैं।
कल तक लेते थे सफल दिशानिर्देश,
अब डाल उपेक्षित दृष्टि आप पर सभी निकल जाते हैं।
अपने ही सहला कर, कर जाते हैं व्याघात।
भाई साहब………..।
शरीर भी आपका साथ नही देता है,
कुछ इतर ही मुँह आपका कह देता है।
यह शैथिल्य आपका मेरे मन में-
करुण भाव भर देता है।
आप वही हैं देखकर लगता है आघात।
भाई साहब………..।
जयन्ती प्रसाद शर्मा