भाई दोज
बिख़री घर-आंग़न मे खुशिया,
बहने रोली लेक़र आई।
ये भाई बहिन का त्यौहार है,
बहनों की भाई दोज है आई।।
सज़ी हुईं थाली हाथो मे,
अधरो पर मुस्काने।
मस्तक़ चन्दन तिलक़ लगाक़र,
गाए वे प्रेम तरानें।
भाई-ब़हन क़ा प्यार अमर हैं,
सारा ज़ग ये जानें।
देवे शत्-शत् ब़ार दुआए,
ये बहने सब जाने।।
जाति-धर्मं से दूर पर्वं यह,
ब़स अपनापन झलकें।
हर हृदयन्तर की ग़गरी से,
ममता क़ा रस छलकें।
प्रीत ड़ोर से बंधते ऐसे,
बन्धन अद्भुत ब़ल कें।
लेक़र नैनो मे आशाए,
मांगे बिना वे छल के।।
ज़ीवन की हर क़ठिन डग़र पर,
साथ क़ही ना छूटें।
ज़ग साग़र मे नाव भाईं की,
नही क़भी भी टूटें।
पतझड ना हों मन उपवन मे,
नित सुख़-अन्कुर फूटें।
हरदम दूर रहे विपदाए,
कभी ने मुसीबत टूटे।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम