भविष्य
भविष्य से अंजान
फिर भी उसे सँवारते है,
उसकी चिंता में अपना
वर्तमान भी गवांते है।
अतीत से ले सीख
वर्तमान आज उद्दीप्त है,
भविष्य के लिये भी
एक दीपक प्रदीप्त है।
चिंता भविष्य की
जी बेशक अपेक्षित है,
अतिरेक पर हर चीज की
हमेशा ही वर्जित है।
भविष्य के चक्कर मे
वर्तमान खराब करते है,
चेहरे के धब्बे मिटाने को
उस पर नकाब रखते है।
चिन्ता वाजिब है पर
कहीं वह चिता न बन जाये,
भविष्य के कारण निर्मेष
कही वर्तमान न बिगड़ जाये।
निर्मेष