भरोसा है मुझे
फुर्र हो जाएगी पूँजी पाप के मद की
पिंजड़े तुम हो न पाओगे
भरोसा है मुझे।
सूर्य से सच के छंटा जब झूँठ का बादल,
ढह गया पल में तुम्हारा रेत का सम्बल,
स्वार्थ की परछाइयों से घिर चुके हो,
तुम निगाहों के शिखर से गिर चुके हो,
थाम लो बैसाखियाँ चाहें खुशामद की
अब खड़े तुम हो न पाओगे,
भरोसा है मुझे।
विष पिलाकर स्वयं अमृत पी रहे हो,
कल्पनाओं के शहर में जी रहे हो,
पंखुड़ी के आवरण की छाँव में,
शूल बनकर तुम चुभे हो पाँव में,
कामना छोड़ो गले के हार के पद की
पाँवड़े तुम हो न पाओगे
भरोसा है मुझे।
फल रहे हैं खूब गंदी सोच के धंधे,
लोभ जेबों में ठुसा तो हो गए अंधे,
गलतियों पर जी हुजूरी कर रहे हैं,
कद बढ़ा, पर यार तुमसे डर रहे हैं,
चापलूसी करे बेशक कद्र इस कद की
पर बड़े तुम हो न पाओगे
भरोसा है मुझे।
स्वयं दस थे, शून्य को करके किनारे,
पूर्ण होकर अर्ध के भी अर्ध से हारे,
पूर्णता की भूख में अब मर रहे हो,
क्यों जतन बेकार वाले कर रहे हो?
लाँघ भू निन्यानवे की सरल सरहद की
सैकड़े तुम हो न पाओगे
भरोसा है मुझे।
संजय नारायण