भगवान श्री परशुराम जयंती
मानवता के अस्तित्व पर, जब जब संकट आता है
सत्ता शासन की प्रभुता में, अहंकार बढ़ जाता है
अन्याय अत्याचार का, अतिरेक हो जाता है
मानवता की रक्षा को, जगदीश्वर स्वयं आ जाता है
दशावतार कथा का हमको, मर्म यही बतलाता है
भारतीय वांग्मय वेद पुराण, रहस्य यही दोहराता है
कार्तिवीर्य सहस्त्रार्जुन को, जब सत्ता का अहं बड़ा
निरंकुश हुई सत्ताशाही, मनमानी पर उतर पड़ा
शिकार खेलते एक बार, जमदग्नि आश्रम पहुंच गया
स्वागत सत्कार और सेवा से, सहस्त्रार्जुन चौंक गया
राज महल जैंसी व्यवस्था, आश्रम में कहां से होती है
कहां से आया यह वैभव,सत्ता से भी यह अछूती है
इस महाघोर बन में राजन, यह कामधेनु सब देती है
राजन सारा धन वैभव, मनमाना सुख देती है
पड़ गई कुदृष्टि कामधेनु पर, बलपूर्वक ऋषि से लाया
अपने बल और सत्ता का, अहंकार दबा ना पाया
जमदग्नि रेणुका पुत्र, विष्णु के छठवें अवतारी थे
भृगु पौत्र परशुराम, शास्त्र शस्त्र धारी थे
शिव शंकर थे गुरु, उनसे ही उनको परशु मिला
धनुर्विद्या और धनु का, एक सुंदर उपहार मिला
अन्याय अनाचार मिटाने, शिव से ही वरदान मिला
मात-पिता पर अन्याय की, जब खबर उन्होंने पाई
तनी भृकुटी परशुराम की , सहस्त्रार्जुन से लड़ी लड़ाई
काटीं सहस्त्र भुजाएं उसकी, सेना मार भगाई
ले आए कामधेनु छुड़ाकर, देरी नहीं लगाई
सहस्त्रार्जुन पुत्रों ने, पिता की मौत का बदला लेने
मात-पिता भाई बहनों का, धोखे से बध कर डाला
परशुराम के क्रोध में, ऐसे कृत्यों ने घी डाला
ले लिया प्रण परशुराम ने, क्षत्रिय हीन धरा का अन्याय अत्याचार दमन, निरंकुश राज मिटाने का
21 बार लड़ी लड़ाई, आतंक मुक्त धरा कराई
कश्यपमुनि को धरा दान दे,अश्वमेध की ज्योति जलाई
नहीं राज के पीछे भागे, तप से तृप्ति पाई
त्रेता युग से द्वापर तक, रहे जगत पर छाई
त्रेता युग में श्री राम मिले, द्वापर कृष्ण कन्हाई
भीष्मपितामह कर्ण सरीखे, शिष्यों की अमरकथाएं हैं
रामायण, महाभारत, भागवत पुराण,
और कल्कि पुराण में उनकी अनंत कथाएं हैं।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी