भगवान बताएं कैसे :भाग-1
कहते हैं कि ईश्वर ,जो कि त्रिगुणातित है, अपने मूलस्व रूप में आनंद हीं है, इसीलिए तो उसे सदचित्तानंद के नाम से भी जाना जाता है। इस परम तत्व की एक और विशेषता इसकी सर्वव्यापकता है यानि कि चर, अचर, गोचर , अगोचर, पशु, पंछी, पेड़, पौधे, नदी , पहाड़, मानव, स्त्री आदि ये सबमें व्याप्त है। यही परम तत्व इस अस्तित्व के अस्तित्व का कारण है और परम आनंद की अनुभूति केवल इसी से संभव है। परंतु देखने वाली बात ये है कि आदमी अपना जीवन कैसे व्यतित करता है? इस अस्तित्व में अस्तित्वमान क्षणिक सांसारिक वस्तुओं से आनंद की आकांक्षा लिए हुए निराशा के समंदर में गोते लगाता रहता है। अपनी अतृप्त वासनाओं से विकल हो आनंद रहित जीवन गुजारने वाले मानव को अपने सदचित्तानंद रूप का भान आखिर हो तो कैसे? प्रस्तुत है मेरी कविता “भगवान बताएं कैसे :भाग-1”?
=====
भगवान बताएं कैसे?
[भाग-1]
=====
क्षुधा प्यास में रत मानव को ,
हम भगवान बताएं कैसे?
परम तत्व बसते सब नर में ,
ये पहचान कराएं कैसे?
=====
ईश प्रेम नीर गागर है वो,
स्नेह प्रणय रतनागर है वो,
वही ब्रह्मा में विष्णु शिव में ,
सुप्त मगर प्रतिजागर है वो।
पंचभूत चल जग का कारण ,
धरणी को करता जो धारण,
पल पल प्रति क्षण क्षण निष्कारण,
कण कण को जनता दिग्वारण ,
नर इक्षु पर चल जग इच्छुक,
ये अभिज्ञान कराएं कैसे?
परम तत्व बसते सब नर में ,
ये पहचान कराएं कैसे?
=====
कहते मिथ्या है जग सारा ,
परम सत्व जग अंतर्धारा,
नर किंतु पोषित मिथ्या में ,
कभी छद्म जग जीता हारा,
सपन असल में ये जग है सब ,
परम सत्य है व्यापे हर पग ,
शुष्क अधर पर काँटों में डग ,
राह कठिन अति चोटिल है पग,
और मानव को क्षुधा सताए ,
फिर ये भान कराएं कैसे?
परम तत्व बसते सब नर में ,
ये पहचान कराएं कैसे?
=====
क्षुधा प्यास में रत मानव को ,
हम भगवान बताएं कैसे?
परम तत्व बसते सब नर में ,
ये पहचान कराएं कैसे?
=====
अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
=====