भगवान तुम्हारा क्या जाता
भगवान तुम्हारा क्या जाता
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इस वसुधा का मालिक तू ही,
जग का तू पालनकर्ता।
कहते हैं भगवन तुझे सब ,
तू हीं सबका दुखहर्ता।
सुख के बदले ही देते ,
एक छोटा आश्रय क्या जाता।
तेरे इस उपकार के बदले ,
यह तन कुछ तो सुख पाता।
माना भाग्यहीन सही पर ,
हूँ तो तेरा ही बालक ।
ओ इस जग के सृजनकर्ता ,
तू ही सबका संचालक।
भाग्य लिखाई कार्य तुम्हारा,
लिख देते तो क्या जाता।
तेरे इस उपकार के बदले ,
यह तन कुछ तो सुख पाता।
किष्किंधा सुग्रीव को दे दी,
और विभिषण को लंका।
कर्महीन मैं दर- दर भटकूँ,
मेरे संग ही क्यों पंगा।
पंगा ही लेना था भगवन ,
दुर्भाग्य से लेते क्या जाता।
तेरे इस उपकार के बदले ,
यह तन कुछ तो सुख पाता।
……………….✍✍
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”