भगवान जगन्नाथ की आरती (०२)
(गुरु नानक देव जी अपनी उदासियों (धार्मिकयात्राएं) के दौरान भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन करने जगन्नाथ पुरी आए थे। जब वह दर्शन करने पहुंचे उसी समय भगवान जगन्नाथ जी की आरती उतारी जा रही थी,उसी समय गुरु नानक देव जी को परमात्मा की दिव्य आरती वंदन के भाव आए थे,जो सुंदर शब्दों में प्रकट हुए थे,जो उस समय चैतन्य महाप्रभु के साथ मंदिर में गाए।वह दिव्य भाव एवं शब्द गुरुवाणी में शामिल है। उनका भाव यह था कि सारी सृष्टि भगवान की आरती उतार रही है, आसमान आरती का थाल है, सूरज चंदा दीप हैं,मलयागिर पर्बत से जो पवन आ रही है बस धूप बत्ती है, धरती पर जो सुमन खिले हैं बह भगवान को अर्पित हो रहे हैं, सभी जीवों में ज्योति भगवान की जल रही है। उनके भाव को मैंने हिंदी में अपने शब्दों में कहा है।)
हे ओंकार, हे निरंकार, हे जगन्नाथ
तुमको ध्याऊं
सुमिरन करूं मैं आरती वंदन
सदा तेरे गुण गाऊं
आरती जगन्नाथ की गाऊं
संग सृष्टि के ध्यान लगाऊं
आकाश को आरती थाल बनाऊं
सूरज चंदा दीप जलाऊं
नाना रत्न अलंकृत सितारे
सजे हुए हैं थाल में सारे
मलयागिरी पर्वत का चंदन
धूप सुगंधित पवन सजाऊं
खिले हुए हैं सुमन धरा पर
श्री चरणों में तुम्हें चढ़ाऊं
नाना है फल फूल रसीले
सप्त अन्न का भोग लगाऊं
सप्तसागर पवित्र सरिता जल
नीरांजन कर तुम्हें ध्याऊं
एक नूर ते सब जग प्रकटया
तुमको शीश नवाऊं
हे ओंकार, हे निरंकार, हे जगन्नाथ
तुमको ध्याऊं
सुमरन करूं मैं आरती वंदन
सदा तेरे गुण गाऊं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी