*भगवान के नाम पर*
धिक्कार है तुमको ऐसे काम पर,
लूट क्यों रहे हो भगवान के नाम पर।
कावड़ लाए गंगा नहाए और चढ़ाई फूल।
भगवान क्या साथ दे, जब विचार है प्रतिकूल।
नाम कहां भगवान का, नौटंकी का बोलबाला।
छाप नोटो की लगाकर, भरते गैरों का थाला।
नंगी वैश्या को देखते, बूढ़े बच्चे और ग्वाला।
ठहाके की सब हंसते हंसी, ऐसे काम पर।
लूट क्यों रहे हो भगवान के नाम पर।।१।।
ऐसा करते क्यों, कोई कहने को तैयार नहीं?
अश्लीलता पर ध्यान है, अध्यात्म का नाम नहीं।
हो जाएगा चारित्रिक हनन, ऐसे काम पर।
लूट क्यों रहे हो भगवान के नाम पर।।२।।
कर्म कर तू अच्छे, कर्मों पर दे तू ध्यान।
मिल जाएगा तुझको, मनचाहा सम्मान।
पाखंड पर टिकी निगाहें, केवल ध्यान है दाम पर।
सर्वज्ञ को याद कर पहुंच जाएगा मुकाम पर।
लूट क्यों रहे हो भगवान के नाम पर।।३।।
पूछता है दुष्यन्त कुमार इस बात को।
बदनाम क्यों कर रहे हो ईश्वर के साथ को?
सर्वव्यापी है वह, मिलेगा हर धाम पर।
बचेगा कौन जब चढ़ेगा तीर कमान पर।
लूट क्यों रहे हो भगवान के नाम पर।।४।।