भक्ति छंद- जन्माष्टमी
प्रेम के तुम सागर हो, मनमोहक अभिराम ।
हरो आतप जनमन के, आओ मेरे श्याम ।।1।।
प्रकटो मुरली धरो, निधि वन करे पुकार ।
बंशी की मधुर धुन का, व्याकुल यह संसार ।।2।।
प्रेम के तुम सागर हो , मोहन दीनदयाल ।
आना ही आज तुम्हें, है कन्हैया लाल ।।3।।
नयन बिछाय बैठी मीरा, देखे गौ गोपाल ।
चीरहरण को रोकने, प्रकटो नंद लाल ।।4।।
भाद्रपद जन्माष्टमी, राधे नाम अपार ।
राधे कृष्ण भज मनवा, भज लो बारम्बार ।।5।।
(रचनाकार- डॉ शिव ‘लहरी’)